पंचगव्य ही अमृत कुंभ
मित्रो...| आपने धर्म शास्त्रों में पढ़ा होगा की सृष्टि रचयिता उमा महेश्वर ने जीव सृष्टि के कल्याण हेतु समुद्र मंथन की लीला रची थी | समुद्र मंथन से पहले गौ माता का ही प्रागट्य हुआ था | ये जानना जरुरी है की गौ माता के पंचतत्वो से ही उमा महेश्वर ने अमृत कुंभ बनाया था |
देवो ने जो अमृत कुंभ पाया था वो अमृत कुंभ गौ माता ध्वारा प्राप्त पंचगव्य से ही बना हुआ था | इसी लिए पहले के समय में सब संत महापुरुषों के आश्रम में गौ माताओ का निवास्थान हुआ करता था | गौ माताका पालन-पोषण होता था | क्योकि गौ माता ध्वारा प्राप्त पंचगव्य से अमृत पा शके |
गौ माता ध्वारा प्राप्त इस अमृत से ही संत महापुरुषों मनुष्यों को स्वस्थ स्वास्थ्य देते थे | ये संत महापुरुषों के प्रयास से हर घर गाय पाली जाती थी | आज के समय में आश्रम लेके बेठे संत महापुरुष गौ माता को छोड़कर मानव समूह को मोह करने लगे है | मानव समूह में कुछ देने की जगह कुछ लेने की उमीद लेके बैठे है |
इस दिन सिर्फ भारत का नहीं विश्व का कल्याण होगा | ऐसे ही जन समुदाय को समय-समय पर आवश्यक सदुपयोग, मार्गदर्शन और प्रोत्साहन देने का भागीरथ प्रयास कर रहे है |
इसी लिए आज के संत महापुरुषों के आश्रम में गौ माता देखने ही नहीं मिलेगी ये एक कडवा सत्य है |
अब तो विदेशी वैज्ञानिक भी मानने लगे है की भारत देश की देशी गाय स्वास्थ्य का खजाना है | सब शास्त्र समंत है की जिस घर में देशी गाय का निवास्थान है एवम जहा गौ माता बैठकर श्वासों श्वास लेती है, इस घर में परेशानियां कोशो दूर चली जाती है |
शास्त्र समंत एक सूत्र है की “तिलम न धान्यम; पशुव: न गौ माता” तिल जैसे धान्य नहीं है इसी तरह गाय पशु नहीं है | “गौ एक माता है” |
गौ माता ध्वारा प्राप्त पंचतत्व ही अमृत कुंभ है | जो देवोने प्राप्त किया था क्योकि गौ पालन से ही स्वास्थ सुरक्षा संभव है |